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ग़ज़ल
खुली है आँख जोश-ए-इंतिज़ार-ए-यार-ए-जानी है
ब-मुश्किल दीदा-ए-ज़ंजीर ख़्वाब-ए-पासबानी है
नसीम देहलवी
ग़ज़ल
क्यों ज़िंदगी मैं नज़्र करूँ इंतिज़ार के
हो इंतिज़ार-ए-यार मगर इस क़दर न हो
सय्यद तनवीर रज़ा आबिदी
ग़ज़ल
इक दिन ज़रूर आएँगे वो मेरे ख़्वाब में
इस इंतिज़ार-ए-यार में हम बा-वज़ू रहे