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ग़ज़ल
हैं इब्तिदाई मरहले ये इश्क़ के अभी
'साहिल' ये सोज़ क्यूँ तिरी आहों में आ गया
अब्दुल हफ़ीज़ साहिल क़ादरी
ग़ज़ल
किसी भी रिश्ते की कुछ इब्तिदाई मुद्दत तक
बतौर-ए-आला-ए-आराइशी रहा हूँ मैं
सय्यद तम्जीद हैदर तम्जीद
ग़ज़ल
आज-कल मेरे तआ'क़ुब में हैं आँखें यार की
इब्तिदाई इश्क़ में इतना असर काफ़ी है क्या
कमल कटारिया करन
ग़ज़ल
नई दुनियाओं के जो पासवर्ड सोचे हैं हम ने
वो 'आसिम' ज़िंदगी की इब्तिदाई की रहे हैं