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ग़ज़ल
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
उश्शाक़ के दिल नाज़ुक उस शोख़ की ख़ू नाज़ुक
नाज़ुक इसी निस्बत से है कार-ए-मोहब्बत भी
हसरत मोहानी
ग़ज़ल
शौक़ है उस को भी तर्ज़-ए-नाला-ए-उश्शाक़ से
दम-ब-दम छेड़े है मुँह से दूद-ए-क़ुल्याँ छोड़ कर