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ग़ज़ल
शब ख़्वाब में देखा था मजनूँ को कहीं अपने
दिल से जो कराह उट्ठी लैला को लिया तप ने
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
अभी ख़बर ही कहाँ तुझ को सोज़-ए-दिल क्या है
तो क़हक़हों को अभी रूह की कराह में रख