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ग़ज़ल
वो बेदर्दी से सर काटें 'अमीर' और मैं कहूँ उन से
हुज़ूर आहिस्ता आहिस्ता जनाब आहिस्ता आहिस्ता
अमीर मीनाई
ग़ज़ल
मुबारक सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
इलाज-ए-दर्द में भी दर्द की लज़्ज़त पे मरता हूँ
जो थे छालों में काँटे नोक-ए-सोज़न से निकाले हैं
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
यही काँटे तो कुछ ख़ुद्दार हैं सेहन-ए-गुलिस्ताँ में
कि शबनम के लिए दामन तो फैलाया नहीं करते
नुशूर वाहिदी
ग़ज़ल
प्यारों से मिल जाएँ प्यारे अनहोनी कब होनी होगी
काँटे फूल बनेंगे कैसे कब सुख सेज बिछौना होगा
मीराजी
ग़ज़ल
जहाँ दो दिल मिले दुनिया ने काँटे बो दिए अक्सर
यही अपनी कहानी है न तुम समझे न हम समझे
सबा अकबराबादी
ग़ज़ल
रह-ए-जुनूँ में लिपटते हैं पाँव से काँटे
ब-हर क़दम ये मिरा एहतिराम होता है
पीर नसीरुद्दीन शाह नसीर
ग़ज़ल
न बगूले हैं न काँटे हैं न दीवाने हैं
अब तो सहरा का फ़क़त नाम है सहरा क्या है