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ग़ज़ल
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
बदन बैठा है कब से कासा-ए-उम्मीद की सूरत
सो दे कर वस्ल की ख़ैरात रुख़्सत क्यूँ नहीं करते
फ़रहत एहसास
ग़ज़ल
मज्लिस-ए-हुस्न में पहुँचे जो कोई तो देखे
कासा-ए-बादा-ए-गुल-रंग धरा होता है