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ग़ज़ल
इश्क़ में ज़िल्लत हुई ख़िफ़्फ़त हुई तोहमत हुई
आख़िर आख़िर जान दी यारों ने ये सोहबत हुई
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
तीरा-बख़्ती से हुई मुझ को ये ख़िफ़्फ़त हासिल
दिल-ए-वहशत में सुवैदा की जगह पाई है
दत्तात्रिया कैफ़ी
ग़ज़ल
बाद मरने के मुझे आप से ख़िफ़्फ़त ये है
जान तो मौत ने ली आप पे इल्ज़ाम आया
सय्यद अहमद हुसैन शफ़ीक़ लखनवी
ग़ज़ल
मूजिब-ए-ख़िफ़्फ़त है 'आलम में तजर्रुद-पेशगी
मैं सुबुक-सार-ए-मोहब्बत हो के हल्का हो गया
मीर शम्सुद्दीन फ़ैज़
ग़ज़ल
ख़ामोश हूँ मुजरिम की तरह आप के आगे
गोया मुझे ख़िफ़्फ़त है कि मैं कुछ नहीं कहता
मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता
ग़ज़ल
हमारी सख़्त-जानी से हुई ख़िफ़्फ़त उसे हासिल
इसी बाइ'स से मुँह उतरा हुआ है तेग़-ए-क़ातिल का
मुंशी शिव परशाद वहबी
ग़ज़ल
मैं जो आया गुफ़्तुगू ख़ामोश ख़िफ़्फ़त बन गई
ज़िक्र मेरा ही था शायद महफ़िल-ए-अहबाब मैं
ज़हीर सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
होगी ख़िफ़्फ़त उन्हें दम तोड़ चुका है 'सफ़दर'
ऐसे रूठे कि न आएँ वो मनाने के लिए