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ग़ज़ल
वही बे-यक़ीनी की है फ़ज़ा वही गर्द-बाद-ए-शुमाल है
मैं चराग़-ए-जाँ हूँ लिए हुए वही शाम-ए-शहर-ए-मलाल है
शमा ज़फर मेहदी
ग़ज़ल
कब तलक सर-गश्ता रहिए दिन को मिस्ल-ए-गर्द-बाद
रात को जूँ शम्अ' जलने को मुहय्या होजिए
रज़ा अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
ख़ाक भी उन की है शक्ल-ए-सर्व मिस्ल-ए-गर्द-बाद
इस क़दर आज़ाद के जीते गिरफ़्तारों में थे
वली उज़लत
ग़ज़ल
दश्त-ए-ग़ुर्बत में हूँ आवारा मिसाल-ए-गर्द-बाद
कोई मंज़िल है न कोई नक़्श-ए-पा रखता हूँ मैं
हिमायत अली शाएर
ग़ज़ल
गुम्बद-ए-गर्द-बाद है सर-ब-फ़लक हर इक तरफ़
दश्त-ए-जुनूँ में रह गई क़ैस की यादगार क्या