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ग़ज़ल
मेरे ग़मगीं होने पर अहबाब हैं यूँ हैरान 'क़तील'
जैसे मैं पत्थर हूँ मेरे सीने में जज़्बात नहीं
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
रहा है तू ही तो ग़म-ख़्वार ऐ दिल-ए-ग़म-गीं
तिरे सिवा ग़म-ए-फ़ुर्क़त कहूँ तो किस से कहूँ
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
वा नहीं होता किसू से दिल गिरफ़्ता इश्क़ का
ज़ाहिरन ग़मगीं उसे रहना ख़ुश आया है बहुत
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
मैं वो मुसाफ़िर-ए-ग़मगीं हूँ जिस के साथ 'वसीम'
ख़िज़ाँ के दौर भी कुछ दूर चल के चल न सके
वसीम बरेलवी
ग़ज़ल
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
हलाक-ए-इश्क़ हूँ यारों मुझे मारा मोहब्बत ने
मिरी ग़मगीं कहानी है उदासी से घिरा हूँ मैं
अदनान हामिद
ग़ज़ल
बे-ठिकाने है दिल-ए-ग़म-गीं ठिकाने की कहो
शाम-ए-हिज्राँ दोस्तो कुछ इस के आने की कहो
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
रौनक़-ए-बज़्म-ए-जहाँ था गो दिल-ए-ग़म-गीं 'फ़िराक़'
सर्द था अफ़्सुर्दा था महरूम था नाकाम था
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
तेरी फ़ुर्क़त में मिरे शे'र हैं कितने ग़मगीं
मुस्कुराती हुई नज़रों से हँसा दे आ कर
अख़्तर शीरानी
ग़ज़ल
कुछ ख़ुद भी हूँ मैं इश्क़ में अफ़्सुर्दा ओ ग़मगीं
कुछ तल्ख़ी-ए-हालात का एहसास हुआ है
नसीम शाहजहाँपुरी
ग़ज़ल
जो कलाम-ए-इश्क़ ये हरगिज़ समझता ही नहीं
दिल को सौ सौ तरह 'ग़मगीं' हाए समझाते हैं हम