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ग़ज़ल
इक रूह-ए-तरन्नुम ने इक जान-ए-तग़ज़्ज़ुल ने
फिर आज नई धुन में 'मुज़्तर' की ग़ज़ल गाई
राम कृष्ण मुज़्तर
ग़ज़ल
मुझ को याद आया बहुत वो ना-मुराद-ए-इश्क़ 'मीर'
दिल के तारों पर 'ज़फ़र' मुतरिब ने जब गाई ग़ज़ल
ज़फ़र कलीम
ग़ज़ल
उस को नतीजे इल्लत-ए-ग़ाई की इस को धुन
फ़र्क़ इस क़दर ही बे-ख़बर ओ बा-ख़बर में है
दत्तात्रिया कैफ़ी
ग़ज़ल
ख़्वाजा-क़ुतबुद्दीं में फिर गड़वा बना कर ले गई
या'नी उन की नज़्र को सौ फूल गुल लाई बसंत
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
सुने दुनिया तिरे क़दमों की आहट दिल की धड़कन से
ये वो धुन है कि जो हर साज़ पर गाई नहीं जाती