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ग़ज़ल
हैफ़ उस चार गिरह कपड़े की क़िस्मत 'ग़ालिब'
जिस की क़िस्मत में हो आशिक़ का गरेबाँ होना
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
हर हसरत पर एक गिरह सी पड़ जाती थी सीने में
रफ़्ता रफ़्ता सब ने मिल कर दिल सी शक्ल बना ली है
ज़ुल्फ़िक़ार आदिल
ग़ज़ल
अज़िय्यतों में भी बख़्शी मुझे वो ने'मत-ए-सब्र
कि मेरे दिल में गिरह है न मेरे माथे पे बल
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
खुले जो हम तो किसी शोख़ की नज़र में खुले
हुए गिरह तो किसी ज़ुल्फ़ की शिकन में रहे