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ग़ज़ल
इलाज-ए-दर्द-ए-दिल मेरा करे वो चारागर कैसे
जो दिल गुर्दे को समझे और जिगर को फेफड़ा समझे
बुलबुल काश्मीरी
ग़ज़ल
नासिर काज़मी
ग़ज़ल
ज़रा सी गर्द-ए-हवस दिल पे लाज़मी है 'फ़राज़'
वो इश्क़ क्या है जो दामन को पाक चाहता है
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
जो क़ीमत जानते हैं गर्द-ए-राह-ए-ज़िंदगानी की
वो ठुकराई हुई दुनिया को ठुकराया नहीं करते
नुशूर वाहिदी
ग़ज़ल
मेरी ख़ातिर अब वो तकलीफ़-ए-तजल्ली क्यूँ करें
अपनी गर्द-ए-शौक़ में ख़ुद ही छुपा जाता हूँ मैं
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
हल्क़ा-ए-ख़्वाब को ही गिर्द-ए-गुलू कस डाला
दस्त-ए-क़ातिल का भी एहसाँ न दिवाने से उठा
परवीन शाकिर
ग़ज़ल
कैसे कैसे चश्म ओ आरिज़ गर्द-ए-ग़म से बुझ गए
कैसे कैसे पैकरों की शान-ए-ज़ेबाई गई