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ग़ज़ल
ज़िया-ए-हुस्न-ए-जानाँ जागुज़ीँ मालूम होती है
बयाज़-ए-चश्म-ए-दिल अर्श-ए-बरीं मालूम होती है
तबीब आरवी
ग़ज़ल
हम और रस्म-ए-बंदगी आशुफ़्तगी उफ़्तादगी
एहसान है क्या क्या तिरा ऐ हुस्न-ए-बे-परवा तिरा
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
हज़ार रुख़ से वो पर्दा उठा चुके हैं मगर
ज़िया-ए-हुस्न की अब भी नक़ाब बाक़ी है
फ़ज़ल हुसैन साबिर
ग़ज़ल
उफ़ ये तलाश-ए-हुस्न-ओ-हक़ीक़त किस जा ठहरें जाएँ कहाँ
सेहन-ए-चमन में फूल खिले हैं सहरा में दीवाने हैं
इब्न-ए-सफ़ी
ग़ज़ल
जुरअत-ए-अर्ज़-ए-तमन्ना मुझे क्यों कर हो 'कँवल'
ख़ातिर-ए-हुस्न पे हर बात गिराँ गुज़री है
कँवल एम ए
ग़ज़ल
ज़िया-ए-हुस्न हर ज़र्रे को इक दिन जगमगा देगी
तिरे जलवों को रोकेंगे हुदूद-ए-ला-मकाँ कब तक
मुनीर भोपाली
ग़ज़ल
इश्क़ रूठा है कभी हुस्न से बद-ज़न हो कर
दाग़-ए-दिल और भड़क उठते हैं रौशन हो कर
जिया लाल दत्त रफ़ीक़
ग़ज़ल
मुझे सुलाएगी अब क्या हवा-ए-ख़्वाब-ए-फ़ना
ज़िया-ए-हुस्न से बेदार हो चुका हूँ मैं