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ग़ज़ल
फिर आया जाम-ब-कफ़ गुल-एज़ार ऐ वाइज़
शिकस्त-ए-तौबा की फिर है बहार ऐ वाइज़
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
ग़ज़ल
जाम-ब-जाम लगी हैं मोहरें मय-ख़ानों पर पहरे हैं
रोती है बरसात छमा-छम देखने वाले देखता जा
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
जाम-ब-दस्त-ओ-मय-ब-जाम यूँ ही गुज़ार सुब्ह-ओ-शाम
ज़ीस्त की तल्ख़ियाँ मुदाम पी के पिला के भूल जा
ख़ुमार बाराबंकवी
ग़ज़ल
थे तिरी बज़्म में सब जाम-ब-कफ़ ऐ साक़ी
इक हमीं तिश्ना-दहन थे तिरे मयख़ाने में
सुदर्शन कुमार वुग्गल
ग़ज़ल
गुलशन में बहार आई है गुल जाम-ब-कफ़ हैं
इस फ़स्ल में साक़ी के तसाहुल ने रुलाया
मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस
ग़ज़ल
मय-ख़ाने में कुछ पी चुके कुछ जाम-ब-कफ़ हैं
साग़र नहीं आता है तो अपना नहीं आता