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ग़ज़ल
जिंस-ए-ख़िरद-ओ-सब्र बिन इस दिल को हो क्या चैन
मुफ़लिस को बुरी होती है अस्बाब की गर्दिश
मोहम्मद रफ़ी सौदा
ग़ज़ल
उजड़ गए ख़िरद-ओ-सब्र-ओ-होश-ओ-ताब-ओ-तवाँ
उसी के नाज़-ओ-अदा की सिपाह के मारे
मिर्ज़ा जवाँ बख़्त जहाँदार
ग़ज़ल
नरेश एम. ए
ग़ज़ल
ताक़त-ओ-सब्र-ओ-ख़िरद तो दे चुके कब के जवाब
हिज्र में अब एक बाक़ी हम को मर जाना रहा
हस्सामुद्दीन हैदर नामी
ग़ज़ल
ख़िर्मन-ए-होश-ओ-ख़िरद जल गए इंसानों के
उन का दावा है फ़सादों में जला कुछ भी नहीं
शान-ए-हैदर बेबाक अमरोहवी
ग़ज़ल
कर चुका जोश-ए-जुनूँ जिंस-ए-ख़िरद पर हाथ साफ़
लौट अब आती है बाज़ार-ए-गरेबाँ की तरफ़
मुंशी नौबत राय नज़र लखनवी
ग़ज़ल
जहान-ए-ख़ैर में इक हुजरा-ए-क़नाअत-ओ-सब्र
ख़ुदा करे कि रहे जिस्म ओ जाँ के होते हुए