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ग़ज़ल
रूह को उस की राह का पत्थर बनना ही मंज़ूर न था
बाज़ी हम ने ही जीती है अपनी इस क़ुर्बानी में
विलास पंडित मुसाफ़िर
ग़ज़ल
जो प्यार हम ने किया था वो कारोबार न था
न तुम ने जीती ये बाज़ी न मैं ने हारी थी
अमजद इस्लाम अमजद
ग़ज़ल
अपने सिवा न किसी को कुछ भी समझा समझूँगा शायद
मैं ऐसे ही जीती है मैं भी ऐसे ही जीता हूँ