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ग़ज़ल
उमैर नजमी
ग़ज़ल
मुझे मंज़ूर गर तर्क-ए-तअल्लुक है रज़ा तेरी
मगर टूटेगा रिश्ता दर्द का आहिस्ता आहिस्ता
अहमद नदीम क़ासमी
ग़ज़ल
हम हैं उस का ही अक्स मगर है बीच में जीवन का दर्पन
जब टूटेगा जीवन-दर्पन तब ज़ाहिर होगी सच्चाई
दीप्ति मिश्रा
ग़ज़ल
शीशा जब भी टूटेगा झंकार फ़ज़ा में गूँजेगी
जब ही कोमल देश दुलारे पत्थर से टकराए हैं
जमील अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
तअल्लुक़ उन से टूटा था न टूटा है न टूटेगा
बहुत मज़बूत ज़ंजीर-ए-वफ़ा-दारी भी होती है
मलिकज़ादा मंज़ूर अहमद
ग़ज़ल
काँच की गुड़ियाँ ताक़ में कब तक आप सजाए रक्खेंगे
आज नहीं तो कल टूटेगा जिस का नाम खिलौना है
शहज़ाद अहमद
ग़ज़ल
जाने कब टूटेगा ये लफ़्ज़ ओ म'आनी का तिलिस्म
जाने कब वो गूँगे लफ़्ज़ों को सदा दे जाएगा