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ग़ज़ल
क्या अजब ख़्वान-ए-मुक़द्दर ही उठा कर फेंके
डाँट कर ख़्वान-ए-मुक़द्दर से उठाया हुआ शख़्स
शहज़ाद नय्यर
ग़ज़ल
'हफ़ीज़' हश्र में कर ही चुका था मैं फ़रियाद
कि उस ने डाँट दिया सामने से आ के मुझे
हफ़ीज़ जौनपुरी
ग़ज़ल
उस के झगड़े पर कभी गर डाँट दूँ तो बोलता है
आप से है प्यार तो फिर किस से हम झगड़ा करेंगे