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ग़ज़ल
लफ़्ज़ तरतीब से रखता हूँ मैं तमसील के साथ
कौन करता है बयाँ फ़ल्सफ़ा तफ़्सील के साथ
नवेद फ़िदा सत्ती
ग़ज़ल
ये मेरे मिटते हुए लफ़्ज़ जो दमक उठे हैं
ज़रूर वो कहीं तरतील कर रहा है मुझे
ज़ियाउल मुस्तफ़ा तुर्क
ग़ज़ल
ज़िंदगी क्या है अनासिर में ज़ुहूर-ए-तरतीब
मौत क्या है इन्हीं अज्ज़ा का परेशाँ होना
चकबस्त बृज नारायण
ग़ज़ल
मैं एक तरतीब से लगाता रहा हूँ अब तक सुकूत अपना
सदा के वक़्फ़े निकाल इस को शुरूअ' से सुन रिधम बनेगा