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ग़ज़ल
उन्हें ये फ़िक्र है हर दम नई तर्ज़-ए-जफ़ा क्या है
हमें ये शौक़ है देखें सितम की इंतिहा क्या है
चकबस्त बृज नारायण
ग़ज़ल
शुक्रिया तेरी नवाज़िश का मगर क्या कहिए
ये नवाज़िश भी तो इक तर्ज़-ए-जफ़ा लगती है
नाज़िम सुल्तानपूरी
ग़ज़ल
यार को तर्ज़-ए-जफ़ा से नहीं रखने का बाज़
नासेहा हर घड़ी मुझ को ही तो समझावेगा
मिर्ज़ा जवाँ बख़्त जहाँदार
ग़ज़ल
अब न खाऊँगा तिरी चश्म-ए-मुरव्वत का फ़रेब
मेरी नज़रों में तिरी तर्ज़-ए-जफ़ा है तो सही
जलील क़िदवई
ग़ज़ल
फिर ले चला है कल मुझे क्यूँ बज़्म-ए-यार में
ईजाद उस ने क्या कोई तर्ज़-ए-जफ़ा किया
हकीम मोहम्मद अजमल ख़ाँ शैदा
ग़ज़ल
या सिखानी न थी उस शोख़ को ये तर्ज़-ए-जफ़ा
या न देना था इलाही दिल-ए-नालाँ मुझ को