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ग़ज़ल
इश्क़ में ज़िल्लत हुई ख़िफ़्फ़त हुई तोहमत हुई
आख़िर आख़िर जान दी यारों ने ये सोहबत हुई
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
ये तिरा बश्शाश चेहरा ये तरी ख़ंदा-लबी
वक़्त ने 'शहज़र' दिया क्या तुझ को ग़म ताज़ा नहीं
मुजीब शेह्ज़र
ग़ज़ल
न दरवेशों का ख़िर्क़ा चाहिए ना ताज-ए-शाहाना
मुझे तो होश दे इतना रहूँ मैं तुझ पे दीवाना