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ग़ज़ल
दुश्मनों की ख़ुद-ब-ख़ुद हो जाएगी तादाद कम
यारों की फ़िहरिस्त में कुछ यार कम कर दीजिए
राजेश रेड्डी
ग़ज़ल
ये ज़मीं जिस पे है गुलज़ारों की तादाद बहुत
ये भी हो सकता है कल को वही मक़्तल हो जाए
असअ'द बदायुनी
ग़ज़ल
जिस तरह चाहिए कर लीजिए नुक़्ते का शुमार
मैं अदद कब हूँ कि तादाद में बट जाऊँगा
इक़बाल अशहर कुरैशी
ग़ज़ल
बिखर कर भी उसी को ढूँढती हैं हर तरफ़ आँखें
जो मुझ को इक निगह में इक से ला-तादाद करता है
मोहम्मद आज़म
ग़ज़ल
ज़माना यूँ नहीं जैसे दिखाई दे रहा है
ख़राबी कोई माह-ओ-साल की तादाद में है