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ग़ज़ल
रिंद रस्ते में आँखें बिछाएँ जो कहे बिन सुने मान जाएँ
नासेह-ए-नेक-तीनत किसी शब सू-ए-कू-ए-मलामत तो आए
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
ऐब-ए-उल्फ़त रोज़-ए-अव्वल से मिरी तीनत में है
दाग़-ए-लाला के लिए क्या फ़िक्र-ए-मरहम कीजिए
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
ये फ़न्न-ए-इश्क़ है आवे उसे तीनत में जिस की हो
तू ज़ाहिद-ए-पीर-ए-ना-बालिग़ है बे तह तुझ को क्या आवे
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
पंडित जवाहर नाथ साक़ी
ग़ज़ल
उस का आँचल और आवेज़े मेरा माथा चूम रही है
फिर भी चश्म-ए-बद-तीनत पुर-उल्फ़त ला-मालूम रही है
शाद आरफ़ी
ग़ज़ल
आग़ा हज्जू शरफ़
ग़ज़ल
वसवास मिरी तीनत ही नहीं और यास मिरी फ़ितरत ही नहीं
उम्मीद की हल्की ज्योति को आँखों में जलाए फिरता हूँ
मीर सय्यद मुज़फ्फर अली ज़फ़र मुज़ाहरी
ग़ज़ल
सूफ़ियान-ए-साफ़-तीनत वासिल-ए-हक़ हो गए
ख़ुद-नुमा दो चार नंग-ए-अहल-ए-इरफ़ाँ हों तो क्या
मुनीर शिकोहाबादी
ग़ज़ल
बे-वफ़ा उन का लक़ब है बा-वफ़ा मेरा ख़िताब
वो है तीनत की ख़राबी ये है उल्फ़त का असर