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ग़ज़ल
उस बज़्म में छिड़ी जो कभी जाँ-दही की बात
उस दम हमारा ज़िक्र भी सौदाइयों में था
शकीला बानो भोपाली
ग़ज़ल
तन-दही जब न करें काम में उस्ताद के ये
क़ुमचियों से न उधेड़े वो फिर अतफ़ाल की खाल
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
ब-वक़्त-ए-पुर्सिश-ए-बीमार-ए-ग़म रोना नहीं अच्छा
तुम्हारे आँसुओं से दिल-दही को ठेस लगती है