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ग़ज़ल
जब कभी बुलबुल मुझे होता है नज़ला और ज़ुकाम
बस ज़रा दो घूँट वक़्त-ए-शाम पी लेता हूँ मैं
बुलबुल काश्मीरी
ग़ज़ल
हम दर्द-ब-दिल नालाँ वो दस्त-ब-दिल हैराँ
ऐ इश्क़ तो क्या ज़ालिम तेरा ही ज़माना है