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ग़ज़ल
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
हम हैं निगोड़े हम हैं भगोड़े हम हैं निकम्मे हम काहिल
जिस दम महफ़िल रंग पे होगी हम से रहा न जाएगा