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ग़ज़ल
ख़ुश-नुमा या बद-नुमा हो दहर की हर चीज़ में
'जोश' की तख़्ईल कहती है कि नुदरत देखिए
जोश मलीहाबादी
ग़ज़ल
'नज़ीर' हज़रत-ए-दिल का न कुछ खुला अहवाल
मैं किस से पूछूँ ये नुदरत-मआब है क्या चीज़
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
अज़ीज़ वारसी
ग़ज़ल
मेरे इस लहजे को भी अब एक नया आहंग तो दे
मेरे सारे अल्फ़ाज़-ओ-अफ़्कार को नुदरत दे साईं
शाहिद कमाल
ग़ज़ल
जब वक़्त ने छानी हैं 'मुज़फ़्फ़र' की बयाज़ें
हर शे'र में नुदरत का दफ़ीना निकल आया
मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
ग़ज़ल
तर्ज़-ए-एहसास में नुदरत थी उधर ही कितनी
फ़िक्र-ओ-जज़्बे में तवाज़ुन है इधर ही कितना