aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "पकड़ना"
झूटी उम्मीद की उँगली को पकड़ना छोड़ोदर्द से बात करो दर्द से लड़ना छोड़ो
हाथ में आड़ी तेग़ पकड़ना ताकि लगे भी ज़ख़्म तो ओछाक़स्द कि फिर जी भर के सताएँ उफ़ री जवानी हाए ज़माने
आज बचपन कहीं बस्तों में ही उलझा है 'सहाब'फिर वो तितली को पकड़ना वो उड़ाना आए
वो भीड़ है कि शहर में चलना मुहाल हैउँगली पकड़ना बाप की बच्चा न भूल जाए
एक साया था जिसे मैं ने पकड़ना चाहावो जो होता था कोई अब नहीं होता कोई
कितने मा'सूम के ये साँप पकड़ना चाहेंकितने भोले हैं कि छूते हैं शरारे बच्चे
देखिए बे-बदनी कौन कहेगा क़ातिल हैसाया-आसा जो फिरे उस को पकड़ना मुश्किल है
ग़म उस का अपनी रूह में जड़ना पड़ा मुझेउस के मु'आमलात में पड़ना पड़ा मुझे
फिसल सकती हूँ तेरे हाथ से मैंमुझे कस कर पकड़ना जल-परी हूँ
मिट्टी को यहाँ पाँव पकड़ना नहीं आतामैं शहर में भी गर्द के तूफ़ाँ की तरह था
तन्हाई में अब भी कोई बालों को सहलाता हैहाथ पकड़ना चाहें तो ठट्ठा मारे पुरवाई यार
अब मुज़्तरिब हैं लम्स से महरूम उँगलियाँबचपन में तितलियों को पकड़ना ज़रूर था
सफ़र की ठोकरों के बा'द मैं भीकोई दामन पकड़ना सीख लूँगा
जिस को मेरा हाथ पकड़ना चाहिए थावो मेरी इक ग़लती पकड़े बैठी है
इश्क़ ने पकड़ा न था 'ग़ालिब' अभी वहशत का रंगरह गया था दिल में जो कुछ ज़ौक़-ए-ख़्वारी हाए हाए
पकड़ा ही गया हूँ तो मुझे दार पे खींचोसच्चा हूँ मगर अपनी वकालत नहीं करता
बहुत लहरों को पकड़ा डूबने वाले के हाथों नेयही बस एक दरिया का नज़ारा याद रहता है
मिरा न होने से क्या फ़र्क़ उस को पड़ना हैपता चले जो किसी कम-नज़र का हो जाए
तू ने क्यूँ मिरा हाथ न पकड़ामैं जब रस्ते से भटका था
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