aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "पलटना"
पलट रहे हैं ग़रीब-उल-वतन पलटना थावो कूचा रू-कश-ए-जन्नत हो घर है घर फिर भी
मैं यहाँ से पलटना चाहता हूँऐ ख़ुदा तेरा मशवरा क्या है
न जा कि इस से परे दश्त-ए-मर्ग हो शायदपलटना चाहें वहाँ से तो रास्ता ही न हो
मिरी दुआ को पलटना था फिर उधर 'मोहसिन'बहुत उजाड़ थे मंज़र उफ़ुक़ से पार के भी
ख़ुश्क मश्कीज़ा लिए ख़ाली पलटना है उसेऔर दरियाओं का शीराज़ा बिखर जाना है
पलटना भी अगर चाहें पलट कर जा नहीं सकतेकहाँ से चल के हम आए कहाँ आहिस्ता आहिस्ता
मंज़िलें भी नहीं मुक़द्दर मेंऔर पलटना हमें गवारा नहीं
पलट के आए ग़रीब-उल-वतन पलटना थाये देखना है कि अब घर कहाँ बनाते हैं
हर एक बात तिरी बे-सबात कितनी हैपलटना बात को दम भर में बात कितनी है
हुज़ूरी-ओ-ग़याब में पड़ा नहींमुझे पलटना आता था पलट गया
तिरे 'इश्क़ में चैन से क्या रहूँ मैं तिरे 'इश्क़ में जब न दे चैन मुझ कोनज़र का पलटना ज़बाँ का बदलना मुक़द्दर की गर्दिश ज़माने की करवट
छू कर बुलंदियों को पलटना है अब मुझेखाने को मेरे घास भी कोहसार में नहीं
आसाँ रुजू-ए-शम्स है लेकिन तिरे मलंगपहुँचें वहाँ जहाँ से पलटना मुहाल हो
ख़ैर-मक़्दम को है तय्यार जहाँ जाइए आपहाँ पलटना हो तो फिर मेरे ही हो जाइएगा
चमन चमन है अगर गुल-फ़िशाँ तो क्या कीजेहमें तो अपने ख़राबे को ही पलटना है
हिसाब-ए-दोस्ताँ दर-दिल नहीं अबपलटना बातों से मुश्किल नहीं अब
उस ने इस तरह पुकारा कि पलटना ही पड़ावर्ना इक बार चला जाऊँ तो आता नहीं मैं
पलटना भी नहीं 'शाहीन' मैं नेऔर आगे भी कोई रस्ता नहीं है
अभी आग़ाज़-ए-उल्फ़त है अभी मुमकिन पलटना हैवगर्ना तुम भी चीख़ोगे हमारा दुख हमारा दुख
वो हैं वहाँ जहाँ से पलटना मुहाल हैफिर भी ये लग रहा है कि वो लौट आएँगे
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