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ग़ज़ल
पए फ़ातिहा कोई आए क्यूँ कोई चार फूल चढ़ाए क्यूँ
कोई आ के शम' जलाए क्यूँ मैं वो बेकसी का मज़ार हूँ
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
'क़मर' वो सब से छुप कर आ रहे हैं फ़ातिहा पढ़ने
कहूँ किस से कि मेरी शम-ए-तुर्बत को बुझा देना
क़मर जलालवी
ग़ज़ल
हमारी ज़ीस्त में थे साथ कौन कौन ऐ 'बर्क़'
अब एक फ़ातिहा को क़ब्र पर नहीं आता
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
ग़ज़ल
आया है यार फ़ातिहा पढ़ने को क़ब्र पर
बेदार बख़्त-ए-ख़ुफ़्ता है ख़्वाब-ए-गिराँ में हम
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
वो न आते फ़ातिहा को ज़रा मुड़ के देख लेते
तो हुजूम-ए-'यास' इतना न सर-ए-मज़ार होता
यगाना चंगेज़ी
ग़ज़ल
जो मिट्टी दी है तो अब फ़ातिहा भी पढ़ते जाओ
कुछ अब सवाब भी लो ख़ाक में मिला के मुझे
हफ़ीज़ जौनपुरी
ग़ज़ल
फ़ातिहा पढ़ कर यहीं सुबुक हो लें अहबाब चलो वर्ना
मैं ने अपनी मय्यत को मदफ़न से अलग कर रक्खा है
अब्दुल अहद साज़
ग़ज़ल
कोई ख़ुर्शीद-सीमा आ रहा है फ़ातिहा पढ़ने
ज़रूरत शम' की अब क्या सिरहाने मेरे मदफ़न के