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ग़ज़ल
चश्म-ए-बे-ऐब में उस का ही सरापा क्यूँ था
जिस का ग़म हद्द-ए-तमन्ना में समाया हुआ है
किश्वर नाहीद
ग़ज़ल
वाइ'ज़ इक ऐब से तू पाक है या ज़ात-ए-ख़ुदा
वर्ना बे-ऐब ज़माने में चलन किस का है
अल्ताफ़ हुसैन हाली
ग़ज़ल
तोय बिन तुर्रा है और ज़ोय पर इक नुक़्ता फिर
ऐन बे-ऐब है और काने मियाँ ग़ेन हुए
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
ऐ बुत-ए-काफ़िर है बस बे-ऐब ज़ात अल्लाह की
लब तिरे 'ईसा हुए बीमार आँखें हो गईं
ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर
ग़ज़ल
कर के सितम की पर्दा-पोशी हम ने उन्हें बे-ऐब किया
वर्ना 'शकील' अपने होंटों पर हर्फ़-ए-शिकायत आज भी है
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
बस ऐ फ़लक नशात-ए-दिल का इंतिक़ाम हो चुका
हँसा था जिस क़दर कभी ज़ियादा उस से रो चुका
साक़िब लखनवी
ग़ज़ल
बढ़ ऐ ज़ौक़-ए-जुनूँ अब किस का डर है
इधर ये सर उधर वो संग-ए-दर है