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ग़ज़ल
बिकते हैं शहर में गुल-ए-बे-ख़ार हर तरफ़
है बाग़बाँ की गर्मी-ए-बाज़ार हर तरफ़
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
थकें जो पाँव तो चल सर के बल न ठहर 'आतिश'
गुल-ए-मुराद है मंज़िल में ख़ार राह में है
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
जिन को रह के काँटों में ख़ुश-मिज़ाज होना था
वो मक़ाम-ए-गुल पा कर बे-दिमाग़ हैं यारो
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
बह गईं पलकें ब-रंग-ए-ख़स मिरी अश्कों के साथ
अब तो नज़रों में गुल-ए-बे-ख़ार आँखें हो गईं
ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर
ग़ज़ल
क़ाज़ी गुलाम मोहम्मद
ग़ज़ल
फ़ज़ा में बू-ए-गुल-ए-मुश्क-बार है कि नहीं
हवा के दोष पे पैग़ाम-ए-यार है कि नहीं