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ग़ज़ल
आगे उस मुतकब्बिर के हम ख़ुदा ख़ुदा किया करते हैं
कब मौजूद ख़ुदा को वो मग़रूर-ए-ख़ुद-आरा जाने है
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
फ़ना बुलंदशहरी
ग़ज़ल
जिसे देखो वही बदमस्त ही मग़रूर है हमदम
कोई बंदा नहीं दुनिया में किस किस को ख़ुदा समझो
अख़्तर अंसारी अकबराबादी
ग़ज़ल
ख़ाकसारों को कभू लाता नहीं ख़ातिर में वो
हुस्न की दौलत पर अपने इस क़दर मग़रूर है