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ग़ज़ल
नीले नीले अम्बर पर वो चाँद वो किरनों की बरसात
हम दोनों खोए खोए से हाए वो मस्त-मनोहर घात
जमील मलिक
ग़ज़ल
पीत के मीठे मधुर मनोहर बोल लिए आता है कोई
साँझ का टीला बोला खिड़की दरवाज़े चौखट जागे
परवेज़ रहमानी
ग़ज़ल
न उल्टी उस ने महफ़िल में नक़ाब अव्वल से आख़िर तक
रही फिर भी तजल्ली-ए-बर्क़-ए-ताब अव्वल से आख़िर तक
मनोहर सहाये अनवर
ग़ज़ल
छुट के ये क़ैद-ए-मकाँ से ला-मकाँ तक जाएगी
बहर-ए-दिल की मौज बहर-ए-बे-कराँ तक जाएगी
मनोहर लाल हादी
ग़ज़ल
मेरे लबों पे मोहर थी पर मेरे शीशा-रू ने तो
शहर के शहर को मिरा वाक़िफ़-ए-हाल कर दिया
परवीन शाकिर
ग़ज़ल
ज़ख़्म-ए-दिल जुर्म नहीं तोड़ भी दे मोहर-ए-सुकूत
जो तुझे जानते हैं उन से छुपाता क्या है
शहज़ाद अहमद
ग़ज़ल
क़त्ल-ए-दिल-ओ-जाँ अपने सर है अपना लहू अपनी गर्दन पे
मोहर-ब-लब बैठे हैं किस का शिकवा किस के साथ करें
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
दफ़्तर-ए-हुस्न पे मोहर-ए-यद-ए-क़ुदरत समझो
फूल का ख़ाक के तोदे से नुमायाँ होना