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ग़ज़ल
तड़प कली की है ये इशरत-ए-नुमू के लिए
कि इज़्तिराब है इरफ़ान रंग-ओ-बू के लिए
प्रेम शंकर गोयला फ़रहत
ग़ज़ल
ये ज़ुल्मतों के परस्तार क्या ख़बर होते
मिरी नवा में ब-जुज़ मुज़्दा-ए-सहर क्या था
आल-ए-अहमद सुरूर
ग़ज़ल
बे-ख़ुदी अच्छी थी अब तो आगही की शक्ल में
ग़म ही ग़म ना-वाक़िफ़-ए-अंजाम ले कर आए हैं
सय्यदा शान-ए-मेराज
ग़ज़ल
लहलहाता है दिल-ए-इशरत में रोज़ ओ शब वो नख़्ल
जिस के बर्ग ओ शाख़ में मौसम महकता है तिरा
इशरत ज़फ़र
ग़ज़ल
इशरत जहाँगीरपूरी
ग़ज़ल
मुस्कुराया है तसव्वुर में ये 'इशरत' कौन आज
हर तरफ़ बज़्म-ए-तमन्ना में दिये जलने लगे
इशरत जहाँगीरपूरी
ग़ज़ल
अजब बिस्मिल है 'इशरत' अपने क़ातिल से ये कहता है
सर-ए-महफ़िल तुझे ऐ जान-ए-महफ़िल चाहता हूँ मैं