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ग़ज़ल
जो मुराद है वही मुद्दआ वही मुत्तक़ी वही पारसा
जो फँसे बला में वो मुब्तला तुम्हें याद हो कि न याद हो
इस्माइल मेरठी
ग़ज़ल
दून की लेता तो है ज़ाहिद मगर मैं क्या कहूँ
मुत्तक़ी साक़ी से बढ़ कर कौन मय-ख़ाने में था
शाद अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
पीर-ए-मुग़ाँ के फ़ैज़ से रौशन है मय-कदा
साग़र का जो मुरीद नहीं मुत्तक़ी नहीं
मोहम्मद यूसुफ़ रासिख़
ग़ज़ल
वही दिल मो'तबर मुफ़्ती है अहल-ए-दीं की दुनिया में
कि जिस में ऐ ज़माने मुत्तक़ी अरमान रहते हैं
ताहिर सऊद किरतपूरी
ग़ज़ल
बरा-ए-ज़र मुत्तक़ी बने हैं हुसूल के मसअले छिने हैं
मुरीद जो हैं वो बुत बने हैं मता-ए-इस्लाम राएगाँ है