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ग़ज़ल
'नरेश' अक़सा-ए-आलम जगमगा उट्ठे निगाहों में
तसव्वुर में मिरे जिस दम मिरा वो रश्क-ए-हूर आया
नरेश एम. ए
ग़ज़ल
राह-ए-तलब में कौन किसी का अपने भी बेगाने हैं
चाँद से मुखड़े रश्क-ए-ग़ज़ालाँ सब जाने पहचाने हैं
इब्न-ए-सफ़ी
ग़ज़ल
सुब्ह कू-ए-यार में बाद-ए-सबा पकड़ी गई
या'नी ग़ीबत में गुलों की मुब्तला पकड़ी गई
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
तू ही संग-ए-मील है अपने लिए सुल्तान-'रश्क'
अपने ही रस्ते में जो हाइल है वो पत्थर भी तू
सुलतान रशक
ग़ज़ल
खो चुका है उस को जब तो ख़ुद ही ऐ सुल्तान-'रश्क'
अब धड़कता है दिल-ए-बे-मुद्दआ किस के लिए
सुलतान रशक
ग़ज़ल
'रश्क'-साहब मैं असीर-ए-जुर्म-ए-ना-मा'लूम हूँ
कैसे मुमकिन है मुझे नाकामियों की ख़ू न हो
सुलतान रशक
ग़ज़ल
रश्क-ए-महशर कोई क़ामत तो निगाहों में जचे
दिल में बाक़ी है अभी ताब-ओ-तवाँ हम-नफ़सो
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
ऐ 'मुबतला' ये बात लिखा दिल के उपर मैं
इक रोज़ मुझ आग़ोश में वो यार न आया
उबैदुल्लाह ख़ाँ मुब्तला
ग़ज़ल
मिस्रा-ए-मतला' सदा विर्द करे 'मुबतला'
दिलबर-ए-बे-बाक सूँ ख़ूब नहीं बोलना
उबैदुल्लाह ख़ाँ मुब्तला
ग़ज़ल
दीवाना हो घर छोड़ कर जाता रहा सहरा तरफ़
ऐ रश्क-ए-लैला तू ने जब 'आशिक़ को मजनूनी दिया