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ग़ज़ल
नशिस्त में इस क़दर तअम्मुल ब-वक़्त-ए-रुख़्सत
मुरस्सा' ओ मुस्त'इद सवारी में क्या कमी थी
ख़ालिद इक़बाल यासिर
ग़ज़ल
ख़ून-ए-दिल से लिक्खा है महज़र-ए-वफ़ा देखो
किस क़दर मुरस्सा है किस क़दर मुज़य्यन है
रशीद शाहजहाँपुरी
ग़ज़ल
भालों से मुरस्सा' हैं आरास्ता तीरों से
हर दिल से उलझने पर माइल हैं तिरी आँखें
प्रेम लाल शिफ़ा देहलवी
ग़ज़ल
कितने नग़्मों से मुरस्सा ज़िंदगी का साज़ है
तार इक टूटे अगर तो मौत का आग़ाज़ है