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ग़ज़ल
नहीं था मुस्तहिक़ 'मख़मूर' रिंदों के सिवा कोई
न होते हम तो फिर लबरेज़ पैमाने कहाँ जाते
मख़मूर देहलवी
ग़ज़ल
नहीं तेरे लिए ये दो मिनट की चुप नहीं काफ़ी
तिरा ग़म मुस्तहिक़ है उम्र भी की नौहा-ख़्वानी का
ख़ुर्शीद तलब
ग़ज़ल
हाँ निभाए हैं मोहब्बत के फ़राएज़ मैं ने
मुस्तहिक़ भी हूँ मगर कोई भी इनआम न दे
अमीता परसुराम मीता
ग़ज़ल
मैं दुआएँ चाहता हूँ मैं दुआ का मुस्तहिक़ हूँ
तुम्हें कौन जानता था मिरी दोस्ती से पहले
मैकश नागपुरी
ग़ज़ल
सितम ये देख कि ख़ुद मो'तबर नहीं वो निगाह
कि जिस निगाह में हम मुस्तहिक़ सज़ा के हैं
राजेन्द्र मनचंदा बानी
ग़ज़ल
जो साथ चलने के भी मुस्तहिक़ न थे 'बासिर'
कुछ ऐसे लोग यहाँ मीर-ए-कारवाँ भी रहे
बासिर सुल्तान काज़मी
ग़ज़ल
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
ग़ज़ल
हबीब सैफ़ी
ग़ज़ल
इस के भी मुस्तहिक़ नहीं अग़्यार ना-बा-कार
गाली भी आप दें तो वो दुर्र-ए-ख़ुशाब है
मोहम्मद यूसुफ़ रासिख़
ग़ज़ल
आशिक़-ए-गेसू-ओ-क़द तेरे गुनहगार हैं सब
मुस्तहिक़ दार के फाँसी के सज़ा-वार हैं सब