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ग़ज़ल
लगा जाती है अपना दाँव और मेरा बचा जाती
तू अपने काम में बाँकैत और रावत है ऐ पन्ना
आबरू शाह मुबारक
ग़ज़ल
वो बिगड़ना वस्ल की रात का वो न मानना किसी बात का
वो नहीं नहीं की हर आन अदा तुम्हें याद हो कि न याद हो