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ग़ज़ल
शो'ला-ए-शम-ए-हरम हुस्न-ए-बुताँ से है ख़जिल
मुझ को ख़तरा है कि लग जाए न बुत-ख़ाने में आग
मिर्ज़ा अली लुत्फ़
ग़ज़ल
अब बला से हो चराग़-ए-दैर या शम-ए-हरम
क़स्द जल कर ख़ाक हो जाने का परवाने में है
मुज़फ़्फ़र शिकोह
ग़ज़ल
चराग़ाँ का'बा-ए-दिल में किया 'मसऊद' दाग़ों ने
न देखे रश्क से मुँह किस तरह शम-ए-हरम मेरा
सय्यद मसूद हसन मसूद
ग़ज़ल
रंग-ए-गुल-ए-शगुफ़्ता हूँ आब-ए-रुख़-ए-चमन हूँ मैं
शम-ए-हरम चराग़-ए-दैर क़श्क़ा-ए-बरहमन हूँ मैं
मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस
ग़ज़ल
हम को सहारे क्या रास आएँ अपना सहारा हैं हम आप
ख़ुद ही सहरा ख़ुद ही दिवाने शम-ए-नफ़स परवाने हैं
इब्न-ए-सफ़ी
ग़ज़ल
ऐ 'नादिर' उन के हुस्न की तारीफ़ क्या लिखूँ
शम-ए-लगन से बढ़ के हैं पुर-नूर पिंडलियाँ