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ग़ज़ल
अगर हाथों से उस शीरीं-अदा के ज़ब्ह होंगे हम
तो शर्बत के से घूँट आब-ए-दम-ए-ख़ंजर में आवेंगे
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
पूछे है क्या हलावत-ए-तलख़ाबा-ए-सरिश्क
शर्बत है बाग़-ए-ख़ुल्द-ए-बरीं के अनार का
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
देख कर महव-ए-जमाल-ए-यार आँखें हो गईं
जाम-हा-ए-शर्बत-ए-दीदार आँखें हो गईं
ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर
ग़ज़ल
समंद-ए-नाज़ की टापों से सर टकराएँ सब आशिक़
पिला शर्बत शहादत का किसी दिन कासा-ए-सम से
असद अली ख़ान क़लक़
ग़ज़ल
हौज़-ए-कौसर की नहीं चाह-ए-ज़नख़दाँ की क़सम
तिश्ना-ए-शर्बत-ए-दीदार हूँ किन का उन का