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ग़ज़ल
शाम हुए ख़ुश-बाश यहाँ के मेरे पास आ जाते हैं
मेरे बुझने का नज़्ज़ारा करने आ जाते होंगे
जौन एलिया
ग़ज़ल
आग़ाज़-ए-मुसीबत होता है अपने ही दिल की शामत से
आँखों में फूल खिलाता है तलवों में काँटे बोता है
हफ़ीज़ जालंधरी
ग़ज़ल
पेचीदा मसाइल के लिए जाते हैं इंग्लैण्ड
ज़ुल्फ़ों में उलझ आते हैं शामत है तो ये है
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
सुब्ह-ए-रुख़ से कौन शाम-ए-ज़ुल्फ़ में जाता था आह
ऐ दिल-ए-शामत-ज़दा शामत लगा कर ले गई
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
बरहम है इस क़दर जो मिरे दिल से ज़ुल्फ़-ए-यार
शामत-ज़दा ने क्या किया ऐसा ख़िलाफ़-ए-ज़ुल्फ़
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
कभी चितवन से अन-बन है कभी सौदा है गेसू का
नसीबों की ये शामत है कि शामत आ ही जाती है
ज़हीर देहलवी
ग़ज़ल
भारतेंदु हरिश्चंद्र
ग़ज़ल
निज़ाम-ए-बज़्म-ए-दुनिया हश्र के मैदाँ का नक़्शा है
यही है शामत-ए-इस्याँ भटकना दर-ब-दर मेरा