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ग़ज़ल
ज़ख़्म के चाँद न रातों को मिरे दिल में उतार
मेरे सीने पे न रख संग-ए-गिराँ-बार बहुत
सिद्दीक़ अफ़ग़ानी
ग़ज़ल
तेशा-ए-इश्क़ ने तोड़ा है हर इक संग-ए-गिराँ
इश्क़ के ज़ेर-ए-क़दम जू-ए-बक़ा जू-ए-रवाँ
पयाम फ़तेहपुरी
ग़ज़ल
गुम हुए जाते हैं धड़कन के निशाँ हम-नफ़सो
है दर-ए-दिल पे कोई संग-ए-गिराँ हम-नफ़सो