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ग़ज़ल
मिन्नत-ए-क़ासिद कौन उठाए शिकवा-ए-दरबाँ कौन करे
नामा-ए-शौक़ ग़ज़ल की सूरत छपने को दो अख़बार के बीच
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
गर्द उड़ाई जो सियासत ने वो आख़िर धुल गई
अहल-ए-दिल की ख़ाक में भी ज़िंदगी पाई गई
आल-ए-अहमद सुरूर
ग़ज़ल
ये सस्ती लज़्ज़तों सस्ती सियासत के पुजारी हैं
हमें अहबाब का सौदा-ए-ख़ाम अच्छा नहीं लगता
आल-ए-अहमद सुरूर
ग़ज़ल
कल हम उन से मिल के कह आए हैं अपना दर्द-ए-दिल
फिर भी 'नाज़िम' शिकवा-ए-बेदाद-ए-दरबाँ रह गया
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
ग़ज़ल
बख़्शी हैं हम को इश्क़ ने वो जुरअतें 'मजाज़'
डरते नहीं सियासत-ए-अहल-ए-जहाँ से हम
असरार-उल-हक़ मजाज़
ग़ज़ल
इतनी रुस्वाइयाँ सह ली हैं तो इक ये भी सही
हम को मंज़ूर हे मिन्नत-कश-ए-दरबाँ होना
जमीलुद्दीन आली
ग़ज़ल
बे-मिन्नत-ए-दरबाँ है मुझे हसरत-ए-दीदार
महमिल का उड़े पर्दा सर-ए-राहगुज़र काश