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ग़ज़ल
सुख़न-वर हूँ सुख़न-फ़हमी की लज़्ज़त बाँट देता हूँ
मैं अपने शेर को ख़ुश्बू की सूरत बाँट देता हूँ
सईद इक़बाल सादी
ग़ज़ल
कितने ही सुख़न-वर-ओ-सुख़न-दाँ 'नज़र' ऐसे
जिन को कभी महफ़िल में ग़ज़ल-ख़्वाँ नहीं देखा
नज़र लखनवी
ग़ज़ल
ऐ दिल ये सब अमीर-ए-सुख़न-वर का फ़ैज़ है
ज़र्रे को जिस ने जौहर-ए-क़ाबिल बना दिया
दिल शाहजहाँपुरी
ग़ज़ल
हैं और भी दुनिया में सुख़न-वर बहुत अच्छे
कहते हैं कि 'ग़ालिब' का है अंदाज़-ए-बयाँ और
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
लफ़्ज़ों ने पी लिया है 'मुज़फ़्फ़र' मिरा लहू
हंगामा-ए-सदा हूँ सुख़न-वर नहीं हूँ मैं