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ग़ज़ल
ये मय-कदा तो नहीं ये तो सेहन-ए-मस्जिद है
ये आ गया मैं कहाँ से कहाँ मआ'ज़-अल्लाह
नज़ीर मुज़फ़्फ़रपुरी
ग़ज़ल
उफ़ ये तलाश-ए-हुस्न-ओ-हक़ीक़त किस जा ठहरें जाएँ कहाँ
सेहन-ए-चमन में फूल खिले हैं सहरा में दीवाने हैं
इब्न-ए-सफ़ी
ग़ज़ल
हर तरफ़ सेहन-ए-चमन में कहती फिरती है नसीम
गुल से हँसती खिलखिलाती मोतिया पकड़ी गई
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
यूँ ही खिलती रहेंगी सेहन-ए-चमन में कलियाँ
यूँही चलती रहेगी बाद-ए-सबा मेरे ब'अद
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
यही काँटे तो कुछ ख़ुद्दार हैं सेहन-ए-गुलिस्ताँ में
कि शबनम के लिए दामन तो फैलाया नहीं करते
नुशूर वाहिदी
ग़ज़ल
जौन एलिया
ग़ज़ल
कोई नौ-वारिदान-ए-सेहन-ए-गुलशन से ज़रा कह दे
चमन की पत्ती पत्ती को अब अपना मेज़बाँ कर लें