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ग़ज़ल
न दिया निशान-ए-मंज़िल मुझे ऐ हकीम तू ने
मुझे क्या गिला हो तुझ से तू न रह-नशीं न राही
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
आँखों ने हाल कह दिया होंट न फिर हिला सके
दिल में हज़ार ज़ख़्म थे जो न उन्हें दिखा सके
हकीम नासिर
ग़ज़ल
मरता भला है ज़ब्त की ताक़त अगर न हो
कितना ही दर्द-ए-दिल हो मगर चश्म-ए-तर न हो
हकीम मोहम्मद अजमल ख़ाँ शैदा
ग़ज़ल
चर्चा हमारा इश्क़ ने क्यूँ जा-ब-जा किया
दिल उस को दे दिया तो भला क्या बुरा क्या