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ग़ज़ल
जराहत-तोहफ़ा अल्मास-अर्मुग़ाँ दाग़-ए-जिगर हदिया
मुबारकबाद 'असद' ग़म-ख़्वार-ए-जान-ए-दर्दमंद आया
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
साग़र-ए-मय पेश कर के शैख़ कहलाता हूँ मैं
हदिया-ए-अहक़र है ये गो आप के क़ाबिल नहीं
महाराजा सर किशन परसाद शाद
ग़ज़ल
नहीं अब कसरत-ए-दाग़-ए-जुनूँ से लाएक़-ए-हदिया
कभी दिल पेशकश करने के क़ाबिल हम भी रखते थे
मिर्ज़ा आसमान जाह अंजुम
ग़ज़ल
हदिया-ए-ग़म हैं 'मुनव्वर' मिरे दिल के टुकड़े
कोई ठुकराए ये सौग़ात बहुत मुश्किल है
मुनव्वर लखनवी
ग़ज़ल
है वही दीवानगी अब भी वही शोरीदगी
जैब ओ दामन हदिया-ए-ख़ार-ए-बयाबाँ अब भी है
बशीरुद्दीन अहमद देहलवी
ग़ज़ल
मैं ज़ियारत-गाह-ए-आगाही से लौट आया हूँ दोस्त
फूल लाया हूँ अलम के हदिया-ए-तबरीक में
अब्दुल अहद साज़
ग़ज़ल
हदिया-ए-गोश-ए-समाअत ही कोई पेश करे
कर्ब-ए-तख़्लीक़ में डूबी हुई आवाज़ हैं हम