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ग़ज़ल
मुझे हादसों ने सजा सजा के बहुत हसीन बना दिया
मिरा दिल भी जैसे दुल्हन का हाथ हो मेहँदियों से रचा हुआ
बशीर बद्र
ग़ज़ल
अर्पित शर्मा अर्पित
ग़ज़ल
ये जो ज़िंदगी की किताब है ये किताब भी क्या किताब है
कहीं इक हसीन सा ख़्वाब है कहीं जान-लेवा अज़ाब है